
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक बार फिर केंद्र सरकार को उसके संवैधानिक कर्तव्यों की याद दिलाई है।
खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर लोकसभा के डिप्टी स्पीकर पद के लिए चुनाव कराने की मांग की है।
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उन्होंने मंगलवार को अपने X अकाउंट पर पत्र साझा करते हुए लिखा—
“पीएम श्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए मेरे पत्र में मैंने लोकसभा डिप्टी स्पीकर के चुनाव की प्रक्रिया तुरंत शुरू करने की अपील की है।”
संविधान का हवाला: अनुच्छेद 93 की याद
अपने पत्र में खड़गे ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 93 का उल्लेख करते हुए कहा:
“लोकसभा को अपने दो सदस्यों को स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के रूप में चुनना अनिवार्य है। डिप्टी स्पीकर सदन का दूसरा सर्वोच्च पीठासीन अधिकारी होता है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार लंबे समय से इस संवैधानिक प्रावधान को नज़रअंदाज़ कर रही है, जो संसद की गरिमा के खिलाफ है।
क्यों नहीं हो रही डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति?
लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद 2019 से खाली पड़ा है, यानी पिछली लोकसभा के कार्यकाल की शुरुआत से ही। यह संसदीय इतिहास में पहली बार हुआ है कि पूरे कार्यकाल में यह पद खाली रहा हो।
खड़गे का सीधा वार – बीजेपी कर रही संविधान की अनदेखी
खड़गे ने पत्र में लिखा:
“यह चिंता का विषय है कि देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक संस्था के एक महत्वपूर्ण पद को सरकार ने जानबूझकर रिक्त रखा है।”
उन्होंने आगे कहा कि “यह सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि संवैधानिक जिम्मेदारी है।”
सवाल सिस्टम से – क्या सत्ता पक्ष को विपक्ष की ज़रूरत नहीं?
सवाल यह भी है कि आमतौर पर डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को देने की परंपरा रही है। तो क्या सत्ता पक्ष विपक्ष को यह ज़िम्मेदारी सौंपना ही नहीं चाहता?
क्या ये लोकतंत्र का एक और ‘डिजिटल इंडिया संस्करण’ है, जहां संविधान की धाराओं को ‘स्किप’ किया जा रहा है’?
लोकतंत्र की रीढ़, या महज़ एक कुर्सी?
लोकसभा में डिप्टी स्पीकर न होना सिर्फ एक रिक्त पद नहीं, बल्कि यह जनप्रतिनिधित्व और संतुलन की अनुपस्थिति को दर्शाता है।
जिस संसद की कार्यवाही की निगरानी निष्पक्ष होनी चाहिए, वहां विपक्ष की भागीदारी पर रोक सवाल खड़े करती है।
अब आगे क्या?
खड़गे ने अपने पत्र में साफ किया है कि वह जल्द ही इस मुद्दे को लोकसभा में भी उठाएंगे। ऐसे में देखना होगा कि क्या मोदी सरकार इस संवैधानिक मांग को मानती है या एक और बार लोकतंत्र को ‘वर्क इन प्रोग्रेस’ कहकर टाल दिया जाएगा।
“जब लोकसभा में स्पीकर तो है, लेकिन डिप्टी स्पीकर नहीं — तो सवाल केवल कुर्सी का नहीं, संविधान की आत्मा का है। खड़गे ने तो खत भेजा है, अब देखना ये है कि प्रधानमंत्री जवाब भेजते हैं या खामोशी।”
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